Movie Review: दर्शकों को मूर्ख बनाती है 2.0, रजनीकांत-अक्षय के फैंस हैं तो रिव्यू पढ़कर ही फैसला लें
-निर्माताः लायका प्रोडक्शंस
-निर्देशकः एस.शंकर
-सितारेः रजनीकांत, अक्षय कुमार, एमी जैक्सन
-समय : 2 घण्टे 27 मिनट
-समय : 2 घण्टे 27 मिनट
-रेटिंग :4.2/5
मनुष्य को मनुष्यता बचाएगी, तकनीक नहीं। निर्देशक शंकर की 2.0 का यही संदेश है। मगर विडंबना यह कि शंकर भूल गए कि सिनेमा को भी कहानी बचाएगी, तकनीक नहीं। आठ साल पहले आई फिल्म रोबोट का यह सीक्वल वीएफएक्स/कंप्यूटर ग्राफिक्स का संजाल है। 150 मिनट की यह फिल्म पहले ही सेकेंड से अपने कृत्रिम करिश्मे से बांधती है परंतु कुछ मिनटों में जादू टूट जाता है। फिल्म चौंकाती है कि दक्षिण भारत के एक छोटे-से शहर में लोगों के हाथों से मोबाइल छिटक कर आसामान में गायब हो रहे हैं। ऐसा देखा ना सुना।
कुछ मिनट बाद सारे मोबाइल आसमान में उड़ते हुए एक बाज के पंजे का आकार धर के मोबाइल टावरों को ध्वस्त करते हैं। नेटवर्क प्रदाता कंपनी से लेकर मिनिस्टरों तक के होश उड़े हैं। तब एक मीटिंग में वैज्ञानिक वासीगरन (रजनीकांत) कहते हैं कि इस अज्ञात शक्ति का मुकाबला उनका रोबोट चिट्टी (रजनीकांत) ही कर सकता है। चिट्टी की वापसी के साथ फिल्म का विलेन पक्षीराज (अक्षय कुमार) सामने आता है। जो मोबाइल इस्तेमाल करने वाले हर व्यक्ति को खत्म कर देना चाहता है। क्यों? आगे 2.0 इसी सवाल का जवाब देती है।
फिल्म देखते हुए विश्व प्रसिद्ध निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक की द बर्ड्स (1963) याद आती है, जिसमें समुद्र किनारे एक शहर में पक्षी अचानक लोगों पर हमला करने लगते हैं। कुछ लोगों को वे मार भी देते हैं। 2.0 कुछ कुछ बच्चों के कॉमिक्स जैसी और बहुत कुछ नीति कथा जैसी है।
पक्षीराज के आने के बाद कहानी में कुछ ऐसा नहीं बचता, जो रोमांचित करे। पटकथा के सिरे बीच में खुल जाते हैं। यही देखना बाकी रहता है कि अंत कैसे-क्या होगा। परंतु अंत देखकर निराशा होती है क्योंकि यह और भी बेसिर-पैर का है। लेखक-निर्देशक शंकर कहानी और स्क्रिप्ट के अलावा बाकी सब तरफ ध्यान देते हैं। पहले हिस्से में रजनी का दबदबा है।
दूसरे में अक्षय आते हैं तो संतुलन बनाता है। शंकर ने उन्हें रजनीकांत से कहीं बूढ़ा बनाया है। हालांकि अक्षय ने अपनी भूमिका अच्छे से निभाई मगर इस रोल में उनके फैन्स को आकर्षित करने वाली कोई बात नहीं है। रजनीकांत के दीवाने भले फिल्म में उनके तीन-चार रूप देख कर मगन हों परंतु 2.0 ऐसी नहीं कि उनके अभिनय या किरदार के लिए याद किए जाएं। फिल्म में न उनके एक्शन हैं, न कॉमेडी और न रोमांस। कहानी और दृश्यों में कई जगह ऐसी अतार्कितता है कि लगता है निर्देशक ने दर्शकों को मूर्ख समझा है।
कहीं इंसान की आत्मा पंछियों की आत्मा से एकाकार हो जाती है तो कहीं सुपर हीरो दो हाथों से पचासों राइफलों का घेरा अपने चारों ओर बना कर दनादन फायर करता है! मूलतः तमिल में बनी 2.0 का हिंदी डब संस्करण अब्बास टायरवाला ने लिखा है और संवाद सड़क से उठाए लगते हैं। संगीत यहां ए.आर. रहमान का है और इसमें कहीं उनकी छाप नहीं।
2.0 में तकनीक का पक्ष छोड़ दें इसे देखने की कोई वजह नहीं। फिल्म बताती है कि जैसे मोबाइल टावरों से फैलने वाला रेडिएशन (विकिरण) पक्षियों के लिए घातक है, वैसे ही स्टारडम के टावर पर चढ़े सितारों का रेडिएशन सिनेमा की सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
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