-निर्माताः चिराग धारीवाल और फौजिया अर्शी
-निर्देशकः नीरज पाठक
-सितारेः सनी देओल, प्रीति जिंटा, अमीषा पटेल, अरशद वारसी, श्रेयस तलपड़े, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, मुकुल देव
रेटिंग 3.9/5
राइटर डायरेक्टर नीरज पाठक की फिल्म 'भैयाजी सुपरहिट' को लेकर इतने कानूनी पचड़े रहे हैं कि इस फिल्म का सारा उत्साह ही दर्शकों के बीच ठंडा पड़ चुका है। जमाना नए कलेवर का है। सनी देओल की फिल्म 'भैयाजी सुपरहिट' की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि यह अब भी 90 के दशक वाले फॉर्मूले में अटकी है।
सनी देओल अपने पिता धर्मेंद्र की ही मैन की लीगेसी को आगे बढ़ाने के लिए जाने जाते रहे हैं। फिर उन्होंने धर्मेंद्र की कॉमेडी वाली फिल्मों की भी विरासत संभाली। अब वह धर्मेंद्र के करियर के ढलान वाले किरदारों की कॉपी बनते जा रहे हैं। भैयाजी सुपरहिट की कमजोर कड़ी है इसमें सनी देओल का भैयाजी वाला किरदार। एक बंदा जो अपनी बीवी के आगे भीगी बिल्ली बन जाता है। अगले ही सीन में वह अपने दुश्मनों के सामने दहाड़ता नजर आता है। जो इंसान दबंग होता है वह हमेशा दबंग रहता है। सामने वाले के दम के आगे उसका किरदार बदलता नहीं है। सनी देओल का फिल्म में डबल रोल है। वह खुद को दोहराते, दुलारते और कहीं-कहीं दुत्कारते नजर आते हैं।
फिल्म की सरप्राइज पैकेज है सपना दुबे। वह दुनिया के लिए एक दबंग इंसान की गोलीमार बीवी है। उसे किसी भी बात में हल्कापन बर्दाश्त नहीं। प्रीति जिंटा को इस किरदार में देखना ही इस फिल्म का सेविंग प्वाइंट है। पूरी फिल्म में तरह-तरह की बनारसी साड़ियां, मांग में सिंदूर और हाथों में नौ-नौ चूडियां पहने सपना दुबे वह प्रीति जिंटा नहीं है, जिसे दर्शक अब तक परदे पर देखते आए हैं।
यह सब तो ठीक लेकिन फिल्म की कहानी क्या है? कहानी एक लाइन की है कि भैयाजी की बीवी उन्हें छोड़ने का फैसला करती है और भैयाजी एक फ्लॉप राइटर डायरेक्टर जोड़ी की मदद से उसे वापस पाने की कोशिश करता है। वह बीवी को बहकाता है, फुसलाता है और बेवकूफ बनाता है। इन्हीं सारी कोशिशों से निकलती है फिल्म की ऐसी कॉमेडी जिसके लिए सिनेमाहाल में कभी तालियां बजती हैं तो कभी निकलती है अफसोस की आह। सनी देओल आखिर यह सब क्यों कर रहे हैं। क्यों नहीं वह फुलटाइम डायरेक्टर बन जाते हैं और एक्टिंग से रिटायरमेंट ले लेते हैं।
फिल्म की कॉमेडी को मदद मिलती है तो बस अरशद वारसी और श्रेयस तलपड़े से। दोनों की कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त है। अरशद को एक अच्छा किरदार मिला है और वह उसे पूरी परफेक्शन से निभाते हैं। श्रेयस के बंगाली मिक्स्ड डायलॉग उनके हिस्से का काम बखूबी करते हैं। फिल्म में साथी कलाकारों की पूरी फौज है। पंकज त्रिपाठी हैं। संजय मिश्रा हैं। जयदीप अहलावत हैं और हैं ब्रजेश काला के साथ मुकुल देव। बस कुछ नहीं है तो वह है डायरेक्टर की सोच कि इतने बेहतरीन कलाकारों से फिल्म में काम क्या लिया जाए।
यह कलाकार परदे पर आते जाते रहते हैं, कहानी इनके साथ इधर-उधर भटकती रहती है। डायरेक्टर नीरज पाठक इनसे बेहतर काम ले पाते तो 'भैयाजी सुपरहिट' की किस्मत बदल सकती थी। टिपिकल फॉर्मूला फिल्म के तौर पर बनी 'भैयाजी सुपरहिट' का संगीत पक्ष काफी कमजोर है। इसका एक भी गाना ऐसा नहीं है जिसे दर्शक सिनेमाहॉल से निकलते वक्त गुनगुना सकते हों। एक्शन हर चीज पर भारी है लेकिन यह ऐसा ऐक्शन है जिसे हिंदी सिनेमा के दर्शक साउथ की डब फिल्मों में टीवी के परदे पर रोज देखने के आदी हो चुके हैं।
'भैयाजी सुपरहिट' में यह ओवर डोज हो गया है। अगर आप सनी देओल के पक्के वाले फैन हैं या फिर प्रीति जिंटा के डिंपल आपको पसंद आते हैं तो यह फिल्म आप एक बार जरूर देख सकते हैं। लेकिन वीकएंड पर अच्छा सिनेमा देखने का शौक रखने वालों को फिल्म निराश करती है। अमर उजाला डॉट कॉम के रिव्यू में 'भैयाजी सुपरहिट' को मिलते हैं ढाई स्टार।
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